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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 06 अर्थान्त रन्याकस अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (लावनी) :- करे समर्थन साधारन के आके जहाँ विशेष कथन।
या विशेष के करे समर्थन आ के जहवाँ साधारन॥
दुओ दशा में से एको भी होत उपस्थित आइ जहाँ।
तब अर्थान्‍तरन्‍यास नाम के अलंकार बनि जात उहाँ॥
या करत समर्थन हो जहाँ बात आम या खास।
एक दोसरा के उहे हऽ अर्थान्‍तरन्‍यास॥
उदाहरण :- मेहरारू लोग जब हठ पर आपन मनमानी करेला।
तब ओ लोग पर कवनो संकट जरूर आ के परेला॥
केकयी जब अपना हठ पर अडि़ के विजय पा गइली।
तब राजा दशरथ अइसन महारथी के खा गइली॥
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फूलन देबी देबी बिहमई गाँव का युवकन का घेरा से भागि परइली।
आ जमुना नदी पँवडि़ के अपना अड्डा पर चलि अइली॥
बिहमई गाँव का युवकन से बदला लेबे तब अइली।
आ चिन्हि चिन्हि के बीस जने के एक साथ बध कइली॥
तब बागी बनि वेश बदलि छिपि के दुइ साल बितवली।
जे जे पकड़े आइल ओ सबको के धूलि चटवली॥
जब हनुमान जी सीता जी के पता लगावे गइले।
तब जानि बूझि के मेघनाद का हाथे स्‍वयं बन्‍हइले॥
फूलन देबी राजनीति में आवे पर जब भइली।
तब बीहड़आ हथियार छोडि़के आत्‍मसमर्पण कइली॥
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योग्‍य व्‍यक्ति केहू जहाँ रहेला तहवाँ पूजल जाला।
अनुभवी लोग का मुँह से प्राय: ई कथन सुनाला॥
बन में चंदन के सेवक बनि साँप लोग लपटाला।
सेवत रहत निरंतर एको क्षण न कबें अलगाला॥
बन का बाहर सूखल काठ होइ के महँग बिहाला।
आ परम पवित्र कहा के सुर नर माथे चढि़ जाला॥
फूलन देवी वन में कइली डाकुन के सरदारी।
दिल्‍ली में अब परम पूज्‍य मिहमान हईं सरकारी॥
कुछ दिन तक चुनाव रण के अभ्‍यास रही यदि जारी।
तब प्रधानमंत्री पद के होइहें अवश्‍य अधिकारी॥
वीर- अति अभिमानी राजा के ना राज्‍य चले पावत चिरकाल।
पृथिवीराज और बी.पी. भी खो दिहले निज राज्‍य विशाल॥
राजनीति में नया काम कुछ सबसे पहिले करत बिहार।
गांधी जी का सत्‍याग्रह के इहवें से बा भइल प्रचार॥
नोवाखाली का बदला में भइल बिहारे में कुछ कार।
बी.पी. पर भी बम बिगले बा सबसे पहिले इहे बहार॥
यादव पदवी बतलावत कि ई सब सचमुच यदु के बंस।
लेकिन ई ना फरियावत कि के कृष्‍ण और के कंस॥
उत्तम कुल पुलस्‍त्‍य के नाती तीनि जने भइले विख्‍यात।
रावण कुम्‍भकर्ण दुई राक्षण और विभीषण संत कहात॥
एक भाप के तीनि बदरवा किंतु अलग तीनूँ के कार।
एगो करिया घटा घेरि के जग में केवल करत अन्‍हार॥
एगो पत्‍थर आ पानीसे लागल खेत करत संहार।
एगो सींचत खेत समय से और बढ़ावत पैदावार॥
उच्‍च बनावे में केहुवे के जाति और कुल देत न काम।
उत्तम करनी से केहु होला ऊँचा और सुयश के धाम॥
 
सवैया :- पंजाब तथा कश्‍मीर में जे बध होत बा ओकर संख्‍या अपार बा।
केतने सौ लोग आरक्षण घोषणा के अब ले बनि शिकार बा।
तबो कई लाखन के हते हेतु अयोध्‍या में ई सरकार तेयार बा।
दियाइल राज्‍य हवे विश्‍वनाथ के जेकर सृष्टि संहारल कार बा॥
 
सार :- केह अयोग्‍य यदि राज काज में अधिकारी बनि जाई।
रही रुष्‍ट आ तुष्‍ट तबो ऊ हानि सदा पहुँचाई॥
कुक्‍कुर यदि मनुवा जाई तब आकर के मुँह चाटी।
अथवा यदि रिसियाई कबहूँ तब चहेटि के काटी॥
 
चौपाई :- शीतल होत साँप के गात। गर में शिव का अहिर मियात॥
सिंह स्‍वभाव मुलायम भैल। चण्‍डी के वाहन बनि गैल॥
औरी कई बात बेमेल। लउकत बा जादो के खेल॥
विश्‍वनाथ के ई दरबार। होत जहाँ सब अद्भुत कार॥
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केहु के यदि कुछ देबे के कहि दीं , तब दीं ततकाल।
बाकी रखले बनि जाई ऊ कहियो जिउ के काल॥
राजा दशरथ दुइ वर देके कुछ दिन चुप रहि गइले।
तब हार पाछि के प्रान गँवा के उरिन कइसहूँ भइले॥
 
दोहा :- सत्ताधारी का मिलें मित्र पचास पचास।
पत्ता रहे त पेड़ में पंछी करें निवास॥
विद्या देत न शिष्‍य के फीस लेत अनिवार्य।
अँगुठा बिनु शिक्षा दिहल कटले द्रोणाचार्य॥
रामचंद्र के धर्ममय रथ रहि गैल बेकार।
चलि ना पावत धर्मरथ जहाँ चलत तलवार॥
गान्‍धी टोप न पहिरले गान्‍धी एको बार।
दोसरा के उपदेश दे बड़का के हऽ कार॥
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धनी मित्र गरिबाह मित्र के सुधि ना कबहुँ लेत हवे।
धन अपना मालिक के अइसनका मदान्‍ध करि देत हवे॥
धन सजी छेंकि लिहले कुबेर धन का लालच में बहि गइलें।
आ मित्र पड़ोसी सोझिया शिव जी उहाँ ताकते रहि गइलें॥
अब तक ले ऊ नंगा आ भिखमंगा सदा कहावेलें।
और पड़ोसी धनपति बनि के सब दिन मौज मनावेलें॥
समृद्ध राज्‍य का भीतर भी कुछ लोग गरीबेरहि जाला।
जे निज दुख के न प्रचार करे चुपचाप गरीबी सहि जाला॥
राम राज्‍य में त्रिजट नाम के एक विप्र अति निर्धन रहले।
जिनके बिलकुल संक्षिप्‍त कथा मुनि बाल्‍मीकि बाड़े कहले॥
कृष्‍ण राज्‍य में विप्र सुदामा निर्धन रहि पन तीनि बितौले।
यद्यपि सखा कृष्‍ण के रहले जेकर गुण ओरात न गौले॥
दुइ गो पत्‍नी जे राखेला ओकर घर बेचैन रहेला।
समता भाव नआ पावेला दूनूँ में सब लोग कहेला॥
एक जनी दूनूँ में केहू सब दिन मन के बढ़ल रहेली।
एही से शिव का माथा पर गंगा हरदम चढ़ल रहेली॥
नीमन मनई से भी कहियो अनजाने में पाप हो जाला।
दशरथ जी तापस बध कइले रामायण में कथा सुनाला॥
 
सार :- काम क्रोध का बश में मानव जीवन आपन सदा बितावें।
अथवा मनुज जाति का प्रति देवता सब इहे नीति अपनावें॥
नारद काम क्रोध जितले तब हरिहर का ना भावल।
भारी माया में फँसाइ के उनके हँसी करावल॥
 
विशेष का समर्थन साधारण से
दोहा :- देबे खातिर आयकर धनिके लोग धरात।
रबि शशि पर गरहन लगत तारागण बचि जात॥
चाँद सूर्य का सामने उडुगन ज्‍योति नसात।
बड़ा वृक्ष का पास ना लघु पौधा उजियात॥
दल बदलू चलि जात सब सत्तादल का पास।
पत्ता वाला पेड़ में पंछी करे निवास॥
कहियो पृथिवीराज से रहे छिनाइल राज।
अबकी बारी खो दिहं विश्‍वनाथ जी ताज॥
देखि दशा कश्‍मीर के होत इहे अंदाज।
सहत न अपना देश में राजपूत के राज॥
 
वीर :- गान्‍धी जी हथियार न छुवले जितले एक महासंग्राम
बड़का लोगन खातिर जग में रहत कठिन ना कवनो काम॥
राजनीति में गान्‍धी कइले सत्‍य अहिंसा के उपयोग।
संभव करे असंभव के भी जे सचमुच बा बड़का लोग॥
 
सार :- राजपूत सब बीर रहे पर सब के राज छिनाइल।
आपुस में फुटमति भइला से के ना कहाँ बिलाइल॥
प्रात: और साँझि का बेरा राति दिवस बदलाला।
आरम्‍भ एक आ अंत दूसरा के आ के नियराला॥
लाल रंग के झण्‍डा चाकर नभ में तब फहराला।
आगम बसन्‍त के अंत जाड़ के अवसर जब आ जाला॥
सेमर सिरिस परास आदि तरु ललका फूल फुलाला।
लाल लाल नव पल्‍लव धारण करि सब वृक्ष सुहाला॥
 
चौपई :- वृक्षारोपण हो चहुओर। शासन एपर देता जोर॥
नील-गाइ संख्‍या दिन रात। बा सरकार बढ़ावत जात॥
केतनो ऊ सब करे जियान। मारे के ना कहत विधान॥
नील गाइ पौधा चरि जात। पनकि न पावत एको पात॥
ई ना समुझत जेकर माथ। राज आज बा ओकरे हाथ॥
लोकातंत्र मूर्खन के राज। ठीक कहेला विज्ञ समाज॥
 
दोहा :- फूलन बचपन में भई पँवड़े में निष्‍णात।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात॥
फूलन देवी के सुयश गइल जगत में छाय।
फूल कबे ना रहत बा पत्त बीच लुकाय॥
फूलन सांसद होइ के करिहें नारि सुधार।
बाल्‍मीकि जी राम के यश कइले उजियार॥
 
साधारण का समर्थन विशेष से
 
उदाहरण (दोहा) :- सकल बस्‍तु गुणदोष मय जग में पावल जात।
कीच काँट का बीच में कमल गुलाब फुलात॥
मानी आपन मान तजि रहि ना सकल अकेल।
फूलन अपना मान का साथे गइली जेल॥
बड़मनई क्षण एक भी व्‍यर्थ न बीते देत।
नेहरू बइठें ट्रेन में सदा किताब समेत॥
 
सार :- बड़का लोग करे गलती तब ऊ ना गलत गनाला।
निय‍म विरुद्ध शब्‍द रिषिमुनि के आर्षप्रयोग कहाला॥
कवि लोगन के महालबारी अलंकार बनि जाला।
कथनी आ करनी नेता के केतनो गलत रहेला॥
दुनियाँ ओके राजनीति के एगो अंग कहेला।
हाकिम कसम खियाइ झूठ के बिलकुल साँच कहेला॥
एक लउरि से हाँकल जाला खरा रहे या खोटा।
लोकतंत्र या प्रजातंत्र ह बेपेनी के लोटा॥
मनुज महान बनेला जूआ में सर्वस्‍व हरैले।
नल और युधिष्ठिर दुओ जुवारी पुण्‍यश्‍लोक कहैले।
पति प्रेम नारि के कइ पुरुष का बीचे यदि बँटि जाला।
ओकर नाम सुमिरले प्रात: महापाप कटि जाला॥
कुन्‍ती मन्‍दोदरी आदि के प्रबल प्रमाण दियाला।
सतयुग त्रेता द्वापर तीनूँ युग एहि में आ जाला॥
 
 


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